ISSN: 2277-260X 

International Journal of Higher Education and Research

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देह बनी रोटी का ज़रिया - डॉ अवनीश सिंह चौहान

abnish2-3वक़्त बना जब उसका छलिया
देह बनी रोटी का ज़रिया

 

ठोंक-बजाकर देखा आखिर
जमा न कोई भी बंदा
'पेटइ' ख़ातिर सिर्फ बचा था
न्यूड मॉडलिंग का धंधा

 

व्यंग्य जगत का झेल करीना
पाल रही है अपनी बिटिया

 

चलने को चलना पड़ता है
तनहा चला नहीं जाता
एक अकेले पहिए को तो
गाड़ी कहा नहीं जाता

 

जब-जब नारी सरपट दौड़ी
बीच राह में टूटी बिछिया

 

मूढ़-तुला पर तुल जाते जब
अर्पण और समर्पण भी
विकट परिस्थिति में होता है
तभी आधुनिक जीवन भी

 

तट पर नाविक मुकर गया है
उफन-उफन कर बहती नदिया।


 

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