आज एक ऐसे व्यक्ति से परिचय कराने जा रहा हूं जिन्होंने अपने क्षेत्र की जन- समस्याओं को सुलझाने/ जनहित में कार्य करने के लिए अपना संपूर्ण जीवन खपा दिया। नाम है डॉ असित प्रताप सिंह (प्रतापगढ़, उ प्र)। विलक्षण व्यक्तित्व के धनी, समाजसेवी, उदारमना, निर्भीक, जुझारू डॉ असित कुमार सिंह ने अनेकों बार अपने क्षेत्र के दिग्गज नेताओं, अधिकारियों, बाहुबलियों के भ्रष्ट और गैरजिम्मेदाराना आचरण के विरुद्ध आवाज उठाई और जन-समस्याओं को उजागर कर उनके हल खोजे। आज भी वह इसी प्रकार का कार्य उतने ही उत्साह से करते आ रहे हैं। कई बार उन्हें सफलता भी मिली, कई बार असफल भी हुए, कई बार उन्हें अपमानित किया गया, कई बार उनकी उपेक्षा की गई, कई बार उन्हें हड़काया गया, कई बार उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिली, लेकिन वह अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। हद तो तब हो गयी जब पिछले दिनों उन्होंने जनपद के अधिकारियों द्वारा किये गए भ्रष्टाचार की जांच कराए जाने की मांग की तो उन्हें अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा (यद्यपि उन्होंने हाईकोर्ट- इलाहाबाद में याचिका दायर कर दी है, जिस पर अभी सुनवाई होनी है)। सच की लड़ाई में उनका रोजगार भी चला गया! मैंने एक बार उनसे पूछा था कि आप यह सब क्यों करते हो? अब तो आपका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है, तनाव बढ़ने पर ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, कई-कई दिन तक बीमार पड़े रहते हो, रोजगार भी जाता रहा, अब तो यह सब छोड़ दो। तब वह बोले, "अब यह सब नहीं छोड़ सकता, भले ही प्राण छूट जाएं। यह सब मैं नहीं करूंगा, तो कौन करने वाला है? मैंने तय कर लिया है कि अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष करता रहूंगा, चाहे कोई साथ दे न दे।" मैं यह सुनकर चुप हो गया था। आज मन हुआ कि इस अदभुत समाजसेवी को याद कर लूँ कुछ इस तरह...