देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर से जब मैंने पीएचडी की थी, तब मेरी गाइड आदरणीया प्रोफेसर प्राची दीक्षित जी एवं एक्स्पर्ट जेएनयू के पूर्व उपकुलपति एवं अंग्रेजी विभागाध्यक्ष श्रद्धेय प्रोफेसर कपिल कपूर जी ने मुझसे कोई गिफ्ट (लिफाफा) नहीं लिया; बस विश्विद्यालय से जो मानदेय मिला, वही लिया। मैंने अपने पिता जी, जिन्होंने स्वयं कभी किसी से रिश्वत या अन्य कोई सेवा नहीं ली, को यह बात बताई, तो बहुत प्रसन्न हुए। मुझसे बोले, "मुझे वचन दो कि जीवन में तुम कभी किसी छात्र या अन्य किसी से कोई गिफ्ट (लिफाफा) या सेवा नहीं लोगे।"
आज एस वी विश्विद्यालय, गजरौला, अमरोहा में पीएचडी वाइवा (अंग्रेजी) लेने जाने का सुअवसर मिला। आदरणीया डॉ मधुवाला सक्सेना जी की अध्ययनशील छात्रा उरूज जी ने जब वाइवा के बाद उपहार (लिफाफा) देना चाहा (इसमें उनका कोई दोष नहीं, हो सकता है कि उन्होंने इस चलन के बारे में कहीं से सुन रखा हो), तो मैंने यह कह कर मना कर दिया कि कुछ देना ही है तो मुझे अपनी दुआओं में याद कर लेना। भद्र महिला उरूज जी दुबई से हैं और उन्होंने अपने पति को एक किडनी दान की है। उरूज जी के इस त्याग को प्रणाम कर घर आ गया। आज मन बहुत प्रसन्न है।