कोरोना पर इधर कई गीत देखने को मिले हैं, एक गीत मैंने भी लिखा है, देखियेगा:-
कोरोना का डर है लेकिन
कोरोना का डर है लेकिन
डर-सी कोई बात नहीं
धूल, धुआँ, आँधी, कोलाहल
ये काले-काले बादल
जूझ रहे जो बड़े साहसी
युगों-युगों का लेकर बल
इस विपदा का प्रश्न कठिन, हल
अब तक कुछ भी ज्ञात नहीं
लोग घरों से निकल रहे हैं
सड़कों पर, फुटपाथों पर
एक भरोसा खुद पर दूजा
मालिक तेरे हाथों पर
जीत न पाए हों वे अब तक
ऐसी कोई मात नहीं
कई तनावों से गुजरे वे
लहरों से भी टकराए
तोड़ दिया है चट्टानों को
शिखरों को छूकर आए
सूरज निकलेगा पूरब में
होगी फिर से प्रात वही।
(इस पोस्ट के साथ जो चित्र दिया गया है, उसे मेरे बड़े भाई साहब कुँवर श्री विनय सिंह चौहान जी ने कल शूट किया था)