आज एक बार फिर वृंदावन-मथुरा में चुनाव संपन्न हो गए। फिर कोई नेता संसद में पहुंचेगा ही। वह वृंदावन लौटकर आएगा भी कि नहीं, कहना मुश्किल; लौटकर आया भी तो वृंदावन के विकास के लिए कुछ काम करेगा भी कि नहीं, कहना मुश्किल; वृंदावन की दुर्दशा देखकर द्रवित होगा भी कि नहीं, कहना मुश्किल!
बदबदाती-बदहाल-बन्द नालियाँ, गन्दे नालों का यमुना में अनवरत गिरना, दम तोड़ती यमुना मैया, अधूरा-अव्यवस्थित परिक्रमा मार्ग, टूटी-फूटी सड़कें, बुजुर्गों एवं विधवाओं की दुर्दशा, आवारा जानवरों का बेलगाम घूमना, पार्किंग की समस्या, बंदरों की मनमानी, पेड़-पौधों का सूखना-कटना जैसी कई समस्याएँ वृंदावन में गले की फांस बनी हुई हैं। क्या कतिपय समाज सुधारक, सामाजिक- सांस्कृतिक संस्थाएँ और विख्यात राजनेता इस ओर भी कभी ध्यान दे पाएंगे?
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